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मकर संक्रांति : सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पर्व

मकर संक्रांति भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और उत्तरायण होने का प्रतीक है। धार्मिक दृष्टि से इसे शुभ समय की शुरुआत माना जाता है। इस वर्ष सूर्य देव मंगलवार 14 जनवरी 2025 को प्रातः 8:53 पर धनु से मकर राशि में जायेंगे।

मकर संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व इसे और भी खास बनाता है आकाशीय गणना के अनुसार सूर्य के राशि (स्थान)परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। मेषादि 12 राशियों में से भगवान भास्कर जब मकर राशि में आते हैं , तब इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है । वैसे तो सभी संक्रांति में पुण्य काल, ग्रहण काल के समान ही माना जाता है किंतु मकर संक्रांति इन सभी में विशेष है।

इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गति करता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को रात्रि कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण का समय शुभ कार्यों, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य मांगलिक कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।

खगोलीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। यह ऋतु परिवर्तन का भी प्रतीक है, जब ठंड का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है और वसंत ऋतु का आगमन होता है।

मकर संक्रांति का उत्सव भारत में विभिन्न नामों और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।इसका बहुत अधिक सांस्कृतिक महत्व है।

• उत्तर भारत: उत्तर प्रदेश, बिहार, और पंजाब में इसे “खिचड़ी पर्व” कहा जाता है। लोग गंगा स्नान कर खिचड़ी और तिल-गुड़ के लड्डू , मूंग दाल की पकौड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
• पश्चिम भारत: महाराष्ट्र में इसे “मकर संक्रांति” के नाम से मनाया जाता है। यहां तिल-गुड़ बांटने और “गुड़ घ्या, गोड़ गोड़ बोला” कहने की परंपरा है। गुजरात और राजस्थान में पतंगबाजी भी एक प्रमुख आकर्षण है। इसे आसमान में रंगों का उत्सव कहा जा सकता है।
• दक्षिण भारत: तमिलनाडु में इसे “पोंगल” के रूप में मनाया जाता है। यहां फसल कटाई का यह प्रमुख पर्व है।
• पूर्वी भारत: पश्चिम बंगाल में इसे “पौष संक्रांति” कहा जाता है, जहां तिल और गुड़ से बने मिष्ठान खाए जाते हैं।

मध्य भारत में भी मकर संक्रांति के पर्व पर स्नान , दान इत्यादि की परंपरा है। यहां भी लोग खिचड़ी, तिल से बने हुए लड्डू, गजक इत्यादि को दान में देते हैं। यहां तिल से बने उबटन का उपयोग करके स्नान का रिवाज है।

इस पर्व में गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है।तिल, गुड़, अन्न, वस्त्र, और धन का दान किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से कई गुना फल की प्राप्ति होती है। सूर्यदेव को अर्घ्य देकर उनसे कृपा और उन्नति की कामना की जाती है।

महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण का चयन किया था। ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण के समय मृत्यु प्राप्त करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री मद्भगवद्गीता के अनुसार उत्तरायण में मृत्यु प्राप्त करने वाले योगी सीधे परमधाम को प्राप्त करते हैं। यह दिन अध्यात्म और आत्म-प्रबोधन के लिए आदर्श माना गया है।

मध्य प्रदेश में दतिया जिले के उन्नाव नामक स्थान पर भगवान सूर्य नारायण का एक प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर है जो श्री बाला जी धाम नाम से प्रसिद्ध है।ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने और पूजा करने से व्यक्ति को आरोग्य, सफलता और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।जो एक नदी के किनारे है यहां दूर-दूर से लोग मकर संक्रांति के पर्व पर स्नान दान के लिए आते हैं। इस मंदिर का उल्लेख ‘ श्री मैथिली शरण गुप्त’ ने अपने काव्यखंड भारत -भारती में भी किया है। लोक मान्यता के अनुसार कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति यदि नदी में स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं , तो उन्हें इस भयानक बीमारी से मुक्ति मिल जाती है।

आध्यात्मिक महत्व की बात की जाए तो मकर संक्रांति को आत्मा की शुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन इस बात का प्रतीक है कि हमें जीवन में अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर बढ़ना चाहिए।सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश करना जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का संचार में वृद्धि करता है ।

मकर संक्रांति न केवल एक ज्योतिषीय घटना है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व हमें जीवन में सकारात्मकता, दान, और आध्यात्मिक उन्नति का संदेश देता है। इसे मनाते समय हमें इसके सांस्कृतिक पहलुओं का ध्यान रखते हुए आत्मिक शुद्धि और समाज कल्याण की भावना को प्राथमिकता देनी चाहिए

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